दृष्टा बनें ........
जब हम किसी भी दुविधा मैं फँस जाते है और विचार शक्ति ख़त्म हो जाती है तो हमें द्रष्टा बनकर देखना चाहिए और हमें निर्णय लेने मैं आसानी होगी या इस बात को यू समझे की जैसे जब कोई मकान या पुल या कोई बड़ा प्रोजेक्ट होता है तो उसका मॉडल या प्रतिरूप बनाया जाता है और विशेषज्ञ द्रष्टा बनकर उसे देखते है इससे कमी दूर की जाती है ,दूसरा उदहारण जब हम किसी फिल्म को देखते है तो हम द्रष्टा होते है इसलिए हमें फिल्म अच्छी या बुरी लगती है ,यदि हम द्रष्टा न होकर फिल्म का हिस्सा हो तो वो हमें अच्छी ही लगेगी, जब हमें निर्णय लेने मैं कोई कठिनाई हो तो एकांत मैं बैठकर द्रष्टा बनकर पूरी घटना को ध्यान दिया जाये तो निर्णय मैं आसानी होगी ।